मेरी नग्म
मेरी नग्म आधी
सोइ सी
मेरी नग्म आधी
खोई सी...
रूठ गयी है आज मुझसे ...
यूँ जो मेने उसे
इतना डांटा...
मगर क्या करता ..
वो आधी रात
को टहलने निकलती
है
जहाँ जाने से मना
किया है ..
जिंदगी
ने ..
वो उसी कमरे को
खोल देती है ..
वहां पड़े टूटे खिलौनो
पर से
धुल हटा कर देर
तक खेलती है
....
हर रोज सजाने की
कोशिस की है उसे...
.
हर बार एक नया
रंग दे कर
....
और रोज वो कपडे गंदे कर अति है..
टुकड़ा टुकड़ा कर
बिखरा है मेरे
पुराने
गीतों का एक शीशा
...
अजीब है.. . मेरी
नग्म उसी मे जा सजती
है... .
-Bibaswan

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